हरिद्वार कुंभ मेला : प्राचीन काल में राजा हर्षवर्धन करते थे 84 दान

Edited By Jyoti,Updated: 26 Feb, 2021 05:43 PM

haridwar kumbh mela 2021

कुंभ मेले का प्रांरभ होने वाला है, हरिद्वार में जोरों शोरों से इसकी तैयारियों चल रहा है, क्योंकि इस बार महाकुंभ का आयोजन धर्म नगरी हरिद्वार में होगा।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
कुंभ मेले का प्रांरभ होने वाला है, हरिद्वार में जोरों शोरों से इसकी तैयारियों चल रहा है, क्योंकि इस बार महाकुंभ का आयोजन धर्म नगरी हरिद्वार में होगा। धार्मिक किंवदंतियों के अनुसार राजा हर्षर्धन और उनके काल के पहले कुछ राजा जब स्नान करने आते थे तो कई प्रकार के दान करते थे जिसमें ज्यातर 84 प्रकार के दान की चर्चा होती है। ऐसा कहा जाता है कि सम्राट हर्षवर्धन प्रत्येक पांचवें और छठें वर्ष प्रयागराज में कुंभ मेले में आते थे और एक-एक करके भगवान सूर्य देव, महादेव और बुध देव का पूजन किया करते थे।
पूजा करने के बाद ब्राह्मणों, आचार्यों, दीनों, बौद्ध संध के तपस्वी भिक्षुओं को दान देते थे। कथाओं के अनुसार इस दान के क्रम में वह प्रयाग लाए हुए अपने खजाने की सारी चीज़ें दान कर देते थे। यहां तक कि वह अपने राजसी वस्त्र तक दान में दे देते थे, बाद में अपनी बहन राजश्री से कपड़े मांगकर पहनते थे।

शास्त्रों में दान की विभिन्न प्रकार की व्याख्याएं की गई हैं, परंतु कुल 84 प्रकार के दानों के बारे में व्यक्ति को हर्षवर्धन के शासन काल में जानने को मिलता है। आज के समय में भी लोग दान तो करते हैं, परंतु उतना नहीं जितना राजा हर्षवर्धन अपने काल में कर दिया करते थे। आज के समय आमतौर पर लोग आज 12 या 18 दान करके अपने धार्मिक दायित्वों की इतिश्री मान लेते हैं। यहां जानें प्रमुख दानों के बारे में-

प्रमुख दानों में ये होता थे:-
वस्त्रः- धोती, कुर्ता, टोपी, अंगोछा, बनियान, ओढ़नी, पगड़ी आदि।

बिस्तरः- पलंग (चारपाई), दरी, मसनद, मसहरी, रजाई, गद्‌दा, तकिया, कम्बल आदि।

घरेलू सामानः- आसन, चौकी, हाता, जूता, लालटेन, चंवर, खड़ाऊं, चूल्हा, थाली, लोटा, बटुआ, गिलास, कटोरा, रस्सी, बाल्टी, चकला, बेलन, तवा, चिमटा, कलहुल, संडासी, कड़ाही, पंचपात्र, आचमनी, गोमुखी, माला, पंखा, चंदन, चम्मच, होरसा, (चंदन घिसने के लिए) दीवट, कलश।

वाहनः- घोड़ा, हाथी, पालकी, बैलगाड़ी आदि।

श्रृंगार सामग्रीः- साबुन, तेल, शीशा, कंघा, तादून, मंजन, इत्र आदि।

ताम्बूल सामग्रीः- पानदान, कत्था, सुपारी, सरौता, लौंग, इलायची, पीकदान आदि।

सोने-चांदी के सामानः- सोने के जेवर, चांदी के जेवर, सोने की प्रतिमा, चांदी की प्रतिमा आदि। इसमें देवताओं की प्रतिमा सहित हाथी, घोड़ा, नाग आदि की प्रतिमाएं भी होती थी।

अन्न सामग्रीः- नारियल, फल, सब्जी, आटा, नमक, दाल, चावल, घी, जौ, गुड़, हल्दी आदि।

विशेष दानः- गोदान, भूमिदान, भवनदान।

अन्य सामग्रीः- कमण्डल, घड़ी, छाता, छड़ी, कुश आसन, पूजा सामग्री आदि।

इसके अलावा इस बात का खास ध्यान रखें कि दान करते समय दान लेने वाले के हाथ पर जल गिराएं। साथ ही दान लेने वाले को दक्षिणा अवश्य दें।

बताया जाता है कि प्राचीन समय में दक्षिणा सोने के रूप में दी जाती थी, लेकिन आज कल की मंहगाई के समय में हर किसी के लिए सोने का दान देना आसाना नहीं है, इसिलए उसकी जगह चांदी भी दक्षिणा के रूप में दी जाती है। कथाओं के अनुसार दान में जो भी चीज दी जाती है, उसके अलग-अलग देवता होते हैं। सोने के देवता अग्नि, दास के प्रजापति और गाय के रूद्र हैं।

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