क्या इटली व स्पेन भी ब्रिटेन के पदचिन्हों पर चलेंगे

Edited By Pardeep,Updated: 05 Jun, 2018 04:07 AM

will italy and spain also follow the footsteps of britain

इटली में पेशे से वकील ज्यूसैप्प काऊंटे को प्रधानमंत्री नियुक्त करने पर समझौता हो जाने से भाग्यचक्र अपनी एक गति पूरी कर चुका है। लेकिन इटली की उथल-पुथल शांत होने से पूर्व ही स्पेन में भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे मारियानो राजय ने हथियार डाल दिए हैं।...

इटली में पेशे से वकील ज्यूसैप्प काऊंटे को प्रधानमंत्री नियुक्त करने पर समझौता हो जाने से भाग्यचक्र अपनी एक गति पूरी कर चुका है। लेकिन इटली की उथल-पुथल शांत होने से पूर्व ही स्पेन में भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे मारियानो राजय ने हथियार डाल दिए हैं। वास्तव में तो 2015 से ही भ्रष्टाचार के आरोपों ने कभी उनका पीछा नहीं छोड़ा था। 

इटली और स्पेन दोनों में ही हाल ही के दौर में सत्तातंत्र को जनशक्ति ने बहुत बुरी तरह नोंचा है। इसलिए शासक वर्ग ने जनशक्ति को ‘पापुलिज्म’ का घृणासूचक नाम दिया है। मैंने उथल-पुथल भरे देहाती क्षेत्रों के लिए रवाना होने से पहले ही रोम में बैठे-बैठे यह स्तम्भ लिख दिया था। होटल की छत पर टहलते हुए रोम के सेंट पीटर्स गिरजाघर की मीनारों की विहंगम भव्यता के दर्शन करते ही मेरे दिमाग में आया कि इसकी बाहरी परतों के नीचे कितनी उथल-पुथल छिपी हुई है।

इटली में यह उथल-पुथल उस दिन से जारी है जब पूर्व जज रह चुके राष्ट्रपति सर्जियो मत्तारेला ने अर्थशास्त्र के 83 वर्षीय प्रोफैसर पाओलो सेवोना को केवल इसलिए शपथ दिलाने से इंकार कर दिया क्योंकि वह यूरोपियन यूनियन (ई.यू.) के कट्टर विरोधी हैं। सेवोना के नाम का प्रस्ताव मार्च चुनावों में सत्ता में आए विजयी गठबंधन द्वारा दिया गया था। इस गठबंधन ने ‘फाइल स्टार मूवमैंट’ चला रखी है जो यूरोपियन यूनियन की विरोधी होने के साथ-साथ सरकार के आपातकालीन कदमों का भी विरोध करती है। जबकि ‘लीग’ प्रवासियों के मुद्दे पर भी यह गठबंधन कट्टरता की हद तक राष्ट्रवादी है। 

जब फाइव स्टार मूवमैंट के उम्मीदवार ज्यूसैप्प काऊंटे प्रधानमंत्री थे तो राष्ट्रपति मत्तारेला द्वारा ठुकराए हुए वित्त मंत्री लीग नेता मत्तियो साल्विनी के जर्मन विरोधी रुख के समर्थक थे। लगातार बढ़ती जर्मन विरोधी भावनाएं इटली के राजनीतिक विमर्श का अटूट अंग बनती जा रही हैं। इस मुद्दे पर मत्तियो साल्विनी का रुख बिल्कुल कड़ा और स्पष्ट है। वह दहाड़ कर कहते हैं : ‘‘जर्मन अखबार हमें भिखारी, कृतघ्न, आलसी, मुफ्त का माल खाने वाले और पता नहीं क्या-क्या कहते हैं। वह चाहते हैं कि हम उनकी पसंद के व्यक्ति को वित्त मंत्री बनाएं।’’ 

इटली में ऐसे-ऐसे दलों और लोगों में गठबंधन बन रहे हैं जिनकी कल्पना करना भी मुश्किल है लेकिन सभी एक-दूसरे से बढ़कर खुद को गर्म दलीय सिद्ध कर रहे हैं। राष्ट्रपति मत्तारेला यूरोपियन एकजुटता के दीवाने हैं लेकिन भगवान ही जानते हैं कि किस दबाव या प्रे्ररणा के अंतर्गत काम करते हुए उन्होंने आई.एम.एफ. के 64 वर्षीय पूर्व अधिकारी कार्लो कोट्टारेली को अंतरिम प्रधानमंत्री बनने के लिए आमंत्रित किया। लेकिन फाइव स्टार लीग के आगे उनकी पेश नहीं चली। विश्व भाईचारा निश्चय ही ई.यू. के पक्ष में है जोकि ब्रिटेन के बाहर निकल जाने के बाद बुरी तरह लहूलुहान है। स्पेन के घटनाक्रम भी ब्रिटेन जैसी दिशा में संकेत कर रहे हैं। लेकिन इटली में जो तांडव मच रहा है वह ब्रिटेन या स्पेन के संकटों की तुलना में कहीं बड़ा है। इसको टालने के लिए विश्व के देशों ने राष्ट्रपति को प्रेरित किया कि वह विभिन्न पार्टियों के साथ विचार-विमर्श शुरू करें। इसके परिणामस्वरूप भी काऊंटे को दोबारा प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। वास्तव में इन प्रयासों से अनहोनी टलने वाली नहीं। यानी कि इटली भी ब्रिटेन के पदचिन्हों का अनुसरण करेगा। फिर भी इन प्रयासों से इसमें केवल विलंब ही हो पाएगा। स्थापित पार्टियों से नाराज हुए लोग आखिर एक दिन अपने प्रतिनिधियों को खुद सत्तासीन करके ही रहेंगे। 

क्या आपको याद है स्पेन में क्या हुआ था? उस समय भी मारियानो राजय भ्रष्टाचार के लिए बदनाम थे लेकिन उनसे देश को छुटकारा दिलाने  के लिए जब वामपंथी वर्चस्व वाले आंदोलन का नेतृत्व करते पाब्लो इग्लेसिया स्पेनी राजनीतिक परिदृश्य पर छा गए तो अंतिम वोट तक राजय किसी न किसी तरह अपने पद पर डटे रहे थे। ऐसा लग रहा था कि स्पेन का व्यवस्था तंत्र आज गिरा, कल गिरा। इसी बीच विदेशी शक्तियों ने कैटालान  स्वतंत्रता का प्रबल विरोध करने वाले कट्टर स्पेनी राष्ट्रवाद के पक्षधर दक्षिणपंथी यूथ पार्टी के नेता एल्बर्ट रिवीरा को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया। आपको यह भी मालूम होगा कि यूनानी कम्युनिस्टों ने जब एलैक्सिस सिपरा के नेतृत्व में खुद को मजबूत किया तो दुनिया भर के प्रगतिवादियों ने कितने हवाई किले बनाए थे। आज यह सभी लोग जर्मनी की गोदी में पिल्ले की तरह नींद में मस्त हैं। 

शीत युद्ध के दौर में पश्चिमी देशों द्वारा क्रिश्चियन डैमोक्रेट्स को किसी न किसी बहाने सत्ता में रखा गया था। उस दौर में इटली की कम्युनिस्ट पार्टी काफी शक्तिशाली थी और लोगों में बहुत लोकप्रिय थी और सोवियत यूनियन भी उस समय अस्तित्व में था तो भी विडम्बनापूर्ण ढंग से उसे सत्ता से दूर रखा गया लेकिन सोवियत यूनियन के धराशायी होते ही इतालवी कम्युनिस्ट पार्टी अपना दबदबा खो बैठी। जब दुनिया पूंजीवादी और साम्यवादी खेमों में बंटी हुई थी तो इटली का न्यायतंत्र भ्रष्टाचार के मामलों पर इसलिए जुबान नहीं खोलता था कि ऐसा करने से वामपंथियों को शक्ति मिलेगी लेकिन जैसे ही वामपंथ वैश्विक स्तर पर कमजोर पड़ गया तो इटली के जागरूक जजों ने इतालवी सत्ता तंत्र का पतन रोकने की दृष्टि से भ्रष्टाचार के मामलों की जांच-पड़ताल शुरू कर दी। 1992 से अब तक सैंकड़ों राजनीतिज्ञ, नौकरशाह और व्यवसायी निर्लज्जतापूर्ण भ्रष्टाचार के मामलों में जेल की हवा खा चुके हैं। 

एक दशक पूर्व कामेडियन बैप्पी ग्रिल्लो ने टैक्नालोजी, पानी, प्रदूषण, बेरोजगारी, आर्थिक परेशानियों इत्यादि जैसे आधारभूत मुद्दों पर युवा लोगों को आंदोलित करने के लिए एक ब्लॉग शुरू किया था। इसके माध्यम से ग्रिल्लो ने इटली में इंटरनैट क्रांति के लिए एक मंच तैयार कर लिया। यही वह मंच है जिस पर इटली का वर्तमान वैकल्पिक राजनीतिक ढांचा सृजित हो रहा है।-सईद नकवी

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