सत्ता खोने के भय से जुटी ‘भीड़’

Edited By Pardeep,Updated: 26 May, 2018 02:33 AM

the crowd of fear of losing power

कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री कुमारस्वामी को बधाई। आशा है कि वह अपने चुनाव प्रचार में कांग्रेस पर जो गंभीर आरोप लगाते रहे और सिद्धरमैया पर कर्नाटक को बर्बाद करने की जिम्मेदारी डालते रहे, उन सबसे बेहतर और कारगर सरकार वह दे सकेंगे? उनके शपथ ग्रहण समारोह...

कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री कुमारस्वामी को बधाई। आशा है कि वह अपने चुनाव प्रचार में कांग्रेस पर जो गंभीर आरोप लगाते रहे और सिद्धरमैया पर कर्नाटक को बर्बाद करने की जिम्मेदारी डालते रहे, उन सबसे बेहतर और कारगर सरकार वह दे सकेंगे? 

उनके शपथ ग्रहण समारोह को भविष्य में मोदी विरोधी एकता दिवस के रूप में मनाया जा सकता है। वे तमाम दल, जो कल तक एक-दूसरे को मन भर-भर कर गालियां दे रहे थे, एक साथ आ खड़े हुए। मकसद सरकार बेहतर चलाना या कोई सामूहिक जन विकास कार्यरूप नहीं बल्कि केवल मोदी विरोधी और भाजपा को सत्ता में आने से रोकना ही है। यह भारतीय राजनीति के लिए कोई नई बात नहीं है। तीसरा मोर्चा भारतीय सार्वजनिक संवाद और चर्चाओं का प्राय: अभिन्न प्रहसन-पर्व बना रहा है। इसे एक अच्छी, दिलचस्प फोटो का अवसर भी कहा जाता है। 

ममता दीदी, बहन मायावती, सोनिया, अरविंद, केजरीवाल, चंद्रबाबू से लेकर बचे-खुचे खंडहरों को समेट रहे सीताराम येचुरी, बिहार के तेजस्वी भी एक साथ दिखे, जिनके पास कुछ राजनीतिक बल है-वैसे उमर अब्दुल्ला अलग रहे, नवीन पटनायक ने किनारा कर लिया और तेलंगाना के राव एक दिन पहले ही थाल पटना गए, उन्हें किसी मीटिंग में रहना था। तो फोटो तो अच्छी बन गई। एक अकेले नरेन्द्र मोदी के डर ने इन तमाम छोटे-बड़ों को साथ ला बिठाया। इतना डर कि नेता कोई हो न हो, नगरपालिका चुनाव लडऩे की हैसियत हो न हो, किसी राज्य में एकाध विधायक भी हो न हो पर सर्दी आते ही तनिक से कंबल में आ सिमटने की कोशिश करते ठंड से कंपकंपाते लोग जैसा दृश्य दिखाते हैं, चुनाव सिर पर आते ही हार के डर से भयाक्रांत बेचारे विपक्षी नेता एक मंच पर आ सिमटे।

सिंह की गर्जना और उसके विराट प्रभाव का मुकाबला सिंह की शक्ति से ही किया जा सकता है। भिन्न-भिन्न आकार, प्रकार और विचार के कायाधारी सत्ता की गोट से एकजुट होकर जितनी भी जोर से आवाज निकालें या धूम-धड़ाका करें, वे गर्जना और प्रभाव का विकल्प नहीं बन सकते। कर्नाटक में जो हुआ वह विजयी लोगों की सफलता का उत्सव नहीं बल्कि परास्त एवं जनता द्वारा अस्वीकार कर दिए गए परस्पर विरोधी दलों की सत्ता-सुख की आकांक्षा का तमाशा भर था। क्या ये लोग भूल पाएंगे कि राज्य के चुनाव में जद (एस) व कांग्रेस को अपने पिछले रिकार्ड की तुलना में मुंह की खानी पड़ी और भाजपा सबसे अधिक सीटें लेकर दोनों से कहीं आगे रही?

जो दल तीसरे स्थान पर पिछड़ गया, वह सत्ताधारी दल बने और जो सबसे ज्यादा सीटें पाए वह विपक्ष में बैठे, क्या यह लोकतंत्र और जनादेश का सम्मान कहा जाएगा? पर सत्ता आंकड़ों का खेल है और जिसे विपक्षी एकता कहा जा रहा है, जिसमें एकता का एकमात्र कारण अपने अस्तित्व को बचाते हुए भाजपा के चक्रवर्ती विस्तार को रोकना है, जनता से छल और चुनावी-विलास का उदाहरण है। बिना शक विपक्ष चाहिए और सशक्त, मुखर, असमझौतावादी विपक्ष चाहिए। यह लोकतंत्र की मांग तथा संवैधानिक संस्थाओं की सुरक्षा एवं दीर्घजीविता के लिए जरूरी है। इसके लिए 2019 का डर नहीं, बल्कि अपने तरीके, अपने सर्वसम्मत कार्यक्रम के जरिए जन विकास एवं भारत गौरव बढ़ाने का इच्छा बल चाहिए। 

यदि ये तमाम दल न्यूनतम स्वीकृत एजैंडा, एक सर्वसम्मत नेतृत्व और सीटों के बंटवारे पर स्वीकार्य फार्मूले के साथ मैदान में उतरें तो नि:संदेह सत्ताधारी दल को चुनौती तो दे ही सकते हैं, जनता के सामने भी साफ-सुथरा विकल्प प्रस्तुत कर सकते हैं पर जिसे विपक्षी एकता कहा जा रहा है उसमें किसी एक ङ्क्षबदू पर भी, जिसका सरोकार 2019 से पूर्व चुनावी एजैंडे पर सहमति से हो, कोई मतैक्य नहीं है, न ही होने की कोई संभावना है। ये सब प्राय: एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे, सबका सर्वसम्मत एजैंडा होगा मोदी-हराओ, चुनाव के बाद जिसे जितनी सीटें मिलेंगी उसके आधार पर आंकड़ों का कुनबा जोड़ेंगे। 

इसे वे विपक्षी एकजुटता कहते हैं। एकजुटता सिर्फ इस बात पर है कि ये लोग एक-दूसरे के भ्रष्टाचार पर चुप रहेंगे, चुनावों में धांधलियों, टिकट देने की नीलामी के दौरे को चलने देंगे, अराजक शासन की पद्धति पर खामोशी ओढ़ेंगे, पहले गालियां देंगे, फिर गलबहियां डालेंगे। जनता मूक बनी ताका करेगी, जैसे कर्नाटक में हुआ। यह भयाक्रांत लोगों की भीड़ ‘जन-गण-मन’ का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती, यह जन-गण-भय के डरावने रूप को दिखाने वाले चतुर सुजान हैं। देश बहुत मुश्किल से आर्थिक-आतंकवाद से उबरा है, विश्व राजनीति में बहुत लम्बे दौर के बाद भारत को सशक्त, सबल, समर्थ राष्ट्र के नाते विश्व में देखा जा रहा है, ऐसे समय में देश के विकास का एजैंडा नहीं बल्कि परस्पर विरोधियों का सत्ता की गोंद से चिपकना किस भविष्य का द्योतक है? इसमें चर्च द्वारा मोदी सरकार को हटाने के लिए प्रार्थनाओं की अपील और भी भयानक हो उठती है, जिसे वैटिकन के षड्यंत्र का हिस्सा माना जा रहा है। 

क्या इस तमाम परिदृश्य को भारत तोडऩे वाली उन्हीं ताकतों का पुन: प्रकटीकरण माना जाए जो गजनवी के सोमनाथ विध्वंस का कारण बनी थीं? ईश्वर से प्रार्थना है कि ऐसा न हो। यह देश देशवासियों के सामूहिक मन से ही चले। कर्नाटक में जीती तो भाजपा है लेकिन पिछले दरवाजे से हारे हुओं का जमघट सरकार बनाने का प्रयास करे तो यह कांग्रेस की मोहल्ला-छाप दुरावस्था का ही प्रतीक है। हार में, जीत में गरिमा बनाए रखना अब राजनीति का हिस्सा नहीं। भाजपा भी समझ ले कि आने वाला समय केवल पार्टी के लिए नहीं, उन तमाम कार्यकत्र्ताओं और देहदानी प्रचारकों की कीर्ति को संजोए रखने की परीक्षा का है, जिनके कारण पार्टी इस मुकाम तक पहुंची है। अहंकार बड़े से बड़ा पुण्य भी क्षार कर देता है, कांग्रेस इसका उदाहरण है।-तरुण विजय

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!