चुनाव के बाद सबक सीख जाएंगे इमरान खान

Edited By Pardeep,Updated: 16 Jul, 2018 03:44 AM

imran khan will learn lessons after election

पाकिस्तान को अपने नवीनतम उद्धारक तेज गेंदबाज इमरान खान की प्रतीक्षा है जिनके इस महीने के अंत में चुनावों के बाद प्रधानमंत्री बनने की पूरी संभावना है। वह सेना तथा नौकरशाही के पसंदीदा उम्मीदवार हैं जिनकी वह सेवा करते हैं, उनका संदर्भ पाकिस्तान के...

पाकिस्तान को अपने नवीनतम उद्धारक तेज गेंदबाज इमरान खान की प्रतीक्षा है जिनके इस महीने के अंत में चुनावों के बाद प्रधानमंत्री बनने की पूरी संभावना है। वह सेना तथा नौकरशाही के पसंदीदा उम्मीदवार हैं जिनकी वह सेवा करते हैं, उनका संदर्भ पाकिस्तान के मीडिया के साथ-साथ ‘प्रतिष्ठान’ ने संयुक्त रूप से किया है। इस दिशा में अंतिम कदम लोकप्रिय पंजाबी नेता (कश्मीर मूल के) नवाज शरीफ की गिरफ्तारी के बाद उन्हें जेल में बंद करने के साथ उठाया गया।

इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ की ताकत खैबर पख्तूनख्वाह क्षेत्र तथा पंजाब के कुछ हिस्सों में है, जहां शरीफ की पार्टी भी मजबूत है। यदि शरीफ सत्ता से बाहर नहीं हुए होते तो इमरान के लिए लोकतांत्रिक तरीके से सफल होना संभव नहीं होता। शरीफ भ्रष्टाचार तथा आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में पनामा पेपर्स द्वारा खुलासा किए जाने के बाद दोषी पाए गए हैं। शरीफ के बाहर होने से खान के लिए रास्ता अब खुला है। 

खान को पसंदीदा उम्मीदवार के तौर पर क्यों देखा जा रहा है? यह बताना आसान है। पाकिस्तान में क्या गलत हो रहा है, इसका उल्लेख करते हुए अपने भाषणों में वह सेना का जिक्र नहीं करते। वह सिर्फ पाकिस्तान के राजनेताओं तथा पूर्व के नेताओं के भ्रष्टाचार के बारे में बात करते हैं और इसके साथ ही अमरीका तथा पाकिस्तानी युद्धों की चर्चा करते हैं जिन्होंने उनके अनुसार देश को पिछड़ा बनाए रखा है। खान के बारे में एक अन्य बात उनके द्वारा धर्म को गले लगाना तथा आधुनिक राष्ट्र में इस्लाम की भूमिका के साथ सहज महसूस करना है। यह उन्हें ‘अधिष्ठान’ के विचार के अनुकूल बनाता है कि यदि वह चुनाव जीतते हैं तो पाकिस्तान को अंतत: एक आदर्श सरकार मिल जाएगी। 

दुर्भाग्य से यह एक कल्पना है। यदि खान जीतते हैं तो वह अन्य पाकिस्तानी नेताओं के रास्ते पर चलेंगे क्योंकि वह एक ऐसे ढांचे का हिस्सा हैं जिसे कोई पहचान नहीं मिलती। अब यह हैरानीजनक है मगर शरीफ किसी समय ठीक ऐसी ही स्थिति में थे जिसमें अब खान हैं। 1980 के दशक में उन्हें राष्ट्रपति जिया उल हक ने आगामी राजनीतिज्ञ के तौर पर चुना था। जिया के निधन तथा बेनजीर भुट्टो के अज्ञातवास से लौटने के बाद सेना में शरीफ का इस्तेमाल बेनजीर भुट्टो की  ‘उदार’ प्रवृत्ति से निपटने के लिए किया जिसके परिणामस्वरूप त्रिशंकु संसद अस्तित्व में आई। 

बेनजीर भुट्टो को अहसास हो गया कि वह सेना के समर्थन के बिना शासन नहीं कर सकतीं और उन्होंने कश्मीर में जेहाद की नीति के आगे समर्पण कर दिया जिससे नियंत्रण रेखा के दोनों ओर दुख पहुंचा। मगर वह स्वतंत्र दिमाग की थीं तथा आने वाले समय में वह पाकिस्तान में सामान्य स्थितियां बहाल करना चाहती थीं, जो सेना की कट्टर मान्यताओं से उन्हें दूर ले जाती। पाकिस्तान के दुर्भाग्य से उन्होंने इस स्वतंत्रता की कीमत अपनी जान से चुकाई। 

शरीफ को भी समय पर ऐसा ही अहसास हो गया था। उन्होंने एक ऐसे नेता के तौर पर शुरूआत की जो सेना के साथ मिलकर चलना चाहता था। अपने कार्यकाल के अंतिम दशक अथवा अधिक समय के दौरान उन्होंने भारत के साथ स्थितियां सामान्य बनाने का प्रयास किया। यह एक ऐसी बात थी जो सेना को दंतविहीन कर देती और इसीलिए इस बात का सेना ने विरोध किया। मगर भारत के साथ स्थितियां सामान्य बनाए बिना (अर्थात एक-दूसरे को क्षति पहुंचाने वाले लश्कर-ए-तैयबा जैसे सशस्त्र समूहों पर आरोप लगाना तथा विभिन्न झगड़ों को समाप्त करना) पाकिस्तान के लिए एक आधुनिक तथा कार्यशील राष्ट्र बनने के लिए कोई अन्य रास्ता नहीं है। 

यह अहसास आमतौर पर कड़ी भाषा बोलने वाले पाकिस्तानियों में तब आता है जब वे सत्ता में आते हैं और दुनिया की सच्चाई उनके सामने होती है। यहां तक कि जनरल मुशर्रफ, जिन्होंने अपना नाम कारगिल में ‘एडवैंचर’ के माध्यम से बनाया (जिसे दक्षिण एशियाई विद्वान स्टीफन कोहेन ने एक युक्तिपूर्ण विजय मगर रणनीतिक तौर पर एक बड़ी भूल बताया), अंत में भारत के साथ शांति चाहते थे। 1980 के दशक से पूर्व पाकिस्तान के उद्धारकत्र्ता थे जुल्फिकार अली भुट्टो, जो अपनी लापरवाही के कारण एक राष्ट्रीय नायक बने। एक युवा मंत्री के नाते भुट्टो ने राष्ट्रपति जनरल अयूब खान को भारत के साथ युद्ध शुरू करने के लिए उकसाया। फिर उन्होंने अपने संरक्षक की पीठ में यह कह कर छुरा घोंपा कि विश्व द्वारा दोनों राष्ट्रों को ताशकंद में शांति के लिए बाध्य करने के बाद अयूब ने पाकिस्तान के साथ धोखा किया। 

इसने उन्हें ‘अधिष्ठान’ के बीच लोकप्रिय बना दिया और वह सत्ता में आ गए। किसी भी चीज को न बदल पाने में उनकी असफलता की उन्हें निजी तौर पर कीमत चुकानी पड़ी और कुछ वर्षों बाद सेना ने उन्हें फांसी पर लटका दिया। यही चक्र खुद को दोहराता रहता है और नेता सेना के भारत विरोधी रवैये के साथ सत्ता में आते हैं। तब उद्धारक को अहसास होता है कि उसके हाथ में जो औजार हैं वे न केवल अपर्याप्त तथा नाकाफी हैं बल्कि कार्य के लिए पूरी तरह से गलत भी हैं। ज्यादा संघर्ष तथा अधिक आक्रामक रवैया एक ऐसे राष्ट्र की मदद नहीं कर सकता जिसकी आधारभूत समस्याएं गरीबी तथा प्रशासनिक मुद्दों को सुलझाने की अक्षमता है। 

वास्तव में एक ऐसा राष्ट्र बनाने की जरूरत है जो कम युद्धक तथा आकांक्षाओं के मामले में अधिक शालीन हो जैसे कि भारत के साथ संबंध सामान्य बनाना तथा धर्म के लिए राष्ट्र के अनुराग को कम करना। इसके लिए करिश्मे की नहीं व्यवहारवाद की जरूरत होगी। यह अहसास का पल है जो पाकिस्तानी नेता को सेना के साथ संघर्ष में ले आता है। अयूब तथा मुशर्रफ जैसे सैन्य शासकों को इसका पता चल गया था, जैसा कि बेनजीर, उसके पिता भुट्टो तथा नवाज शरीफ जैसे राजनीतिज्ञों ने किया। इमरान खान भी समय पर सबक सीख जाएंगे।-आकार पटेल

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