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इस सप्ताह 5 राज्यों-मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम तथा तेलंगाना में होने वाले ऊंचे दाव वाले विधानसभा चुनावों के लिए मंच तैयार है। छत्तीसगढ़ में पहले दौर का चुनाव हो चुका है। इनमें से अधिकतर राज्यों में भाजपा तथा कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर है। 

हालांकि परिणामों बारे 11 दिसम्बर को ही पता चल पाएगा, इन चुनावों को लेकर बाकी देश में काफी उत्साह है क्योंकि इन्हें मिनी आम चुनावों के तौर पर देखा जा रहा है। 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए एक ड्रैस रिहर्सल, जो देश के मूड को आकृति देंगे। 2013 में भाजपा ने 3 राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में विजय प्राप्त की थी जिसने 2014 में बहुमत हासिल करना आसान बना दिया था, यद्यपि राष्ट्रीय तथा राज्यों के चुनावों में कोई सीधा संबंध नहीं होता। 

भाजपा मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में गत 15 वर्षों से सत्तासीन है। 2013 में भाजपा ने मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में क्रमश: 165, 163 तथा 49 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस के हिस्से 58, 21 तथा 39 सीटें आई थीं। इन विधानसभाओं में क्रमश: 230, 200 तथा 90 सीटें हैं। भाजपा शासन के जारी रहने का मतलब भाजपा की नीतियों को कुछ समर्थन होगा। 

मिजोरम में भाजपा गौण
मिजोरम एकमात्र उत्तर-पूर्वी राज्य है, जहां भाजपा अपने दम पर या किसी गठजोड़ में सरकार में नहीं है। क्षेत्रीय सहयोगी के साथ मिलकर इस नन्हे राज्य पर जीत हासिल करने का मतलब भाजपा का पूरे क्षेत्र पर विजय प्राप्त करना होगा। मिजोरम में कांग्रेस 2008 से सत्ता में है। 40 विधानसभा सीटों के साथ कांग्रेस मिजो नैशनल फ्रंट तथा मिजो पीपुल्स कांफ्रैंस जैसे राजनीतिक दलों के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है। भाजपा यहां गौण है। 

राजनीतिक पंडित विभिन्न परिदृश्यों की भविष्यवाणी कर रहे हैं। इनमें से किसी भी राज्य में कोई लहर नहीं है। मुद्दे न्यूनाधिक राज्य से ही संबंधित हैं लेकिन मुख्य रूप से वे बिजली की कमी, जल, जनजातीय कल्याण, नक्सलवाद, सत्ता विरोधी लहर, कृषि संकट, पैट्रोल की कीमतों में वृद्धि, राफेल, नोटबंदी तथा जी.एस.टी. को लेकर हैं।राजस्थान में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को वसुंधरा विरोधी लहर सहित दोहरी सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है। 

कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पी.सी.सी. प्रमुख सचिन पायलट तथा पूर्व मंत्री सी.पी. जोशी के दल के साथ एकजुट हैं। यदि कोई गड़बड़ी नहीं होती तो कांग्रेस राज्य को जीत सकती है। मध्य प्रदेश में कड़ी सत्ता विरोधी लहर के बावजूद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चौथी बार सत्ता की राह देख रहे हैं। मगर उनकी निजी लोकप्रियता बरकरार है। यहां कांग्रेस जीत सकती है यदि कोई आंतरिक गड़बड़ी न हो क्योंकि दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया तथा कमलनाथ जैसे कई वरिष्ठ नेता विभिन्न धड़ों का नेतृत्व कर रहे हैं। मध्य प्रदेश में बसपा के अकेले चुनाव लडऩे का कांग्रेस के अवसरों पर असर पड़ सकता है। 

छत्तीसगढ़ में भी भ्रष्टाचार के कई आरोपों तथा माओवादी खतरे के बावजूद मुख्यमंत्री रमन सिंह लोकप्रिय हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी तथा बसपा सुप्रीमो मायावती के बीच गठबंधन के मद्देनजर कांग्रेस के वोट बंटेंगे। राज्यों से 4 तरह के परिदृश्य उभर रहे हैं। भाजपा के लिए सर्वश्रेष्ठ परिदृश्य यह है कि 5 में से 3 राज्य और यहां तक कि मिजोरम में उत्तर-पूर्वी सहयोगी के साथ चौथा राज्य भी प्राप्त कर सकती है। भाजपा के लिए हिन्दी भाषी क्षेत्रों में सत्ता बरकरार रखना यह संदेश देने के लिए महत्वपूर्ण है कि 2019 से पूर्व इसका आधार बरकरार है और यह अत्यंत विश्वास के साथ 2019 के चुनावों में जा सकती है। 

दूसरा परिदृश्य यह है कि भाजपा द्वारा इन राज्यों में से एक को गंवाना लेकिन 2 राज्यों को बरकरार रखना बुरा नहीं है। तीसरा यह है कि भाजपा 3 बड़े राज्यों में से 2 गंवा देती है और केवल एक को बनाए रखने में सफल रहती है, सर्वाधिक सम्भावना छत्तीसगढ़ की है और यह पार्टी के लिए एक झटका होगा। चौथा परिदृश्य सबसे खराब है कि यदि भाजपा सभी तीन राज्यों को गंवा देती है तो यह उसके लिए एक बहुत बड़ी चोट होगी क्योंकि इसका 2019 के चुनावों पर एक बहुत बड़ा असर होगा। 

राहुल गांधी के लिए बड़ा दाव 
कांग्रेस के साथ-साथ इसके अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए ही यह एक बहुत बड़ा दाव होगा, जो गत कुछ महीनों से बड़ा जोरदार प्रचार कर रहे हैं। मार्च में पार्टी की कमान संभालने के बाद उनके नेतृत्व में यह पहला मिनी आम चुनाव होगा। कांग्रेस द्वारा 2 या 3 राज्यों में विजय प्राप्त करने को उसके पुनर्जीवित होने और राहुल गांधी के मोदी को चुनौती देने वाले के तौर पर देखा जाएगा तथा इससे विपक्ष भी एकजुट होगा। यदि यह राजस्थान तथा मध्य प्रदेश जैसे दो बड़े राज्यों में विजय प्राप्त करने में सफल रहती है तो यह एक अप्रत्याशित उपहार होगा। इसका मनोबल बढ़ाने के लिए 3 राज्यों में से एक में विजय हासिल करना भी बुरा नहीं। पार्टी मिजोरम को भी अपने कब्जे में रखने का प्रयास कर रही है। 

टी.एस.पी. कांग्रेस तथा सी.पी.आई. के महागठबंधन से टी.आर.एस. लड़ रही है। मुख्यमंत्री के.चन्द्रशेखर राव को विश्वास है कि वह सत्ता विरोधी लहर से पार पा लेंगे। तेलंगाना में टी.आर.एस. ने विधानसभा चुनावों की जल्दी घोषणा करके सबको चौंका दिया है। कांग्रेस, तेदेपा, भाकपा गठबंधन को मुश्किल होगी क्योंकि टी.आर.एस. को भाजपा से मौन समर्थन मिल रहा है। मिजोरम में भाजपा का सहयोगी मिजोरम नैशनल फ्रंट वर्तमान कांग्रेस शासन को चुनौती दे रहा है। नि:संदेह दोनों राष्ट्रीय दलों के लिए कारगुजारी दिखाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि ये दोनों बराबरी पर भी रहती हैं तो भी दोनों की छवि को कोई नुक्सान नहीं होगा लेकिन इसकी कोई सम्भावना नहीं दिखाई देती। 11 दिसम्बर दिखाएगा कि यह किस ओर जाता है।-कल्याणी शंकर