चंद पाकिस्तानी उच्चाधिकारी दे रहे हैं अपने शासकों को ‘नेक सलाहें’

Edited By Pardeep,Updated: 17 Apr, 2018 02:09 AM

some high ranking pakistani officials are giving noble advice to their rulers

न सिर्फ अस्तित्व में आने के समय से ही पाकिस्तानी शासकों ने अपना भारत विरोधी रवैया जारी रखा हुआ है बल्कि कूटनयिक स्तर पर भी भारतीयों को परेशान करने का कोई मौका पाकिस्तान सरकार हाथ से जाने नहीं देती। बैसाखी पर पाकिस्तान गए सिख श्रद्धालुओं को भारतीय...

न सिर्फ अस्तित्व में आने के समय से ही पाकिस्तानी शासकों ने अपना भारत विरोधी रवैया जारी रखा हुआ है बल्कि कूटनयिक स्तर पर भी भारतीयों को परेशान करने का कोई मौका पाकिस्तान सरकार हाथ से जाने नहीं देती। बैसाखी पर पाकिस्तान गए सिख श्रद्धालुओं को भारतीय दूतावास के अधिकारियों से मिलने की अनुमति न देना इसका नवीनतम उदाहरण है। 

इसकी भारत विरोधी गतिविधियों के बीच समय-समय पर पाकिस्तान में सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े चंद लोग अपनी सरकार को भारत से टकराव का रास्ता छोड़ शांति और सह-अस्तित्व का मार्ग अपनाने की नेक सलाह देते रहते हैं परंतु पाक शासकों पर इसका कोई असर होता दिखाई नहीं देता। गत तीन सप्ताह के दौरान 3 बड़े उच्चाधिकारियों के ऐसे बयान आए हैं।  23 मार्च को भारत में पाक उच्चायुक्त सोहेल महमूद ने कहा‘‘भारत-पाक में कश्मीर सहित सभी लंबित मुद्दे बातचीत से सुलझाए जा सकते हैं। इससे दक्षिण एशिया क्षेत्र शांति, समृद्धि और स्थिरता के युग में प्रवेश करेगा।’’ 

इसी प्रकार 15 अप्रैल को 2008 से 2011 तक अमरीका में पाकिस्तान के राजदूत रहे हुसैन हक्कानी ने कहा कि ‘‘पाकिस्तान को सोचने की जरूरत है कि आतंकवादी हाफिज सईद का समर्थन करने या अंतर्राष्ट्रीय विश्वसनीयता और सम्मान हासिल करने में से क्या अधिक महत्वपूर्ण है।’’ ‘‘यह वास्तविकता है कि कश्मीर समस्या का हल 70 साल में नहीं हुआ है तथा भारत के साथ संबंध सामान्य करने की दिशा में बढऩे से पहले यदि पाकिस्तान इसे हल करने पर जोर देता है तो इसे 70 साल और इंतजार करना पड़ेगा।’’ 

चीन के साथ पाकिस्तान की लगातार बढ़ रही दोस्ती के खतरों का उल्लेख करते हुए उन्होंने पाकिस्तानी शासकों को सलाह दी है कि ‘‘पाकिस्तान को ‘लड़ाकू देश’ और चीन का चमचा बनने की बजाय ‘कारोबारी देश’ बनना और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह चीन की कठपुतली न बने। ’’ ‘‘पाकिस्तान को न ही अमरीका पर निर्भर रहना चाहिए और न चीन पर। उसे आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था बनने की जरूरत है। इसे ‘भू रणनीति’ के स्थान पर ‘भू आर्थिकता’ की ओर सोचना शुरू करना चाहिए।’’ 

एक बड़ी शक्ति से जुडऩे के खतरों के प्रति इस्लामाबाद को आगाह करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘स्वयं को किसी एक बड़ी शक्ति या दूसरों द्वारा इस्तेमाल किए जाने की अनुमति देकर अपनी रणनीतिक स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश ने पाकिस्तान को वर्तमान स्थिति में ला खड़ा किया है और यदि हमने यह खेल खेलना जारी रखा तो भविष्य में परिणाम कोई भिन्न नहीं होगा।’’ इसी प्रकार अतीत में लम्बे समय तक भारत के विरुद्ध कड़वी भाषा बोलने, नियंत्रण रेखा पर निर्दोष लोगों की हत्या का भारत पर आरोप लगाने और आतंकवादी हाफिज सईद की प्रशंसा करने वाले पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा ने भी अब 15 अप्रैल को कहा है कि ‘‘कश्मीर के मूल मुद्दे सहित भारत-पाकिस्तान के बीच के सभी विवादों का शांतिपूर्ण समाधान समग्र एवं अर्थपूर्ण संवाद से ही संभव है।’’ 

उन्होंने कहा कि ‘‘भारत और पाकिस्तान के बीच विवादों का शांतिपूर्ण हल निकाला जा सकता है जिसके लिए व्यापक और सार्थक वार्ता होनी चाहिए जो इस क्षेत्र में शांति के लिए अनिवार्य शर्त है।’’ पाकिस्तान के भारत स्थित उच्चायुक्त, अमरीका में पूर्व पाकिस्तानी राजदूत और पाकिस्तान के वर्तमान सेनाध्यक्ष के उक्त बयान ऐसे समय पर आए हैं जब विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद और कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान को बार-बार मुंह की खानी पड़  रही है। पिछले कुछ समय में जहां ‘फाइनैंशियल एक्शन टॉस्क फोर्स’ ने टैरर फंडिंग व मनी लांड्रिंग के मामले में पाकिस्तान को ‘ग्रे लिस्ट’ में डाल दिया है, वहीं अमरीका ने पाकिस्तान को कई तरह की मदद पर प्रतिबंध लगाने के अलावा हाफिज सईद की प्रस्तावित पार्टी को विदेशी आतंकी गिरोह घोषित करके और संयुक्त राष्टï्र सुरक्षा परिषद ने पाकिस्तान में रहने वाले 139 आतंकियों व आतंकी गिरोहों की सूची जारी कर उसे भारी झटका दिया है। 

ऐसे में पाकिस्तानी शासकों के लिए यह सही समय है कि वे अपने ही उच्चाधिकारियों द्वारा उठाई जा रही सार्थक और सकारात्मक आवाजों को सुनें और अपने घरेलू हालात तथा पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुधारने की दिशा में ठोस पग उठाएं ताकि इस क्षेत्र में सुख-शांति और समृद्धि के एक नए दौर की शुरूआत हो सके।—विजय कुमार  

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