हाथ को पीठ पर बांधकर पत्थरों से प्रैक्टिस करती थीं मिताली

Edited By Punjab Kesari,Updated: 16 Jul, 2017 09:45 AM

mitali raj

माता-पिता एक बच्चे के व्यक्तित्व को आकार देने में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं, वह बच्चों के लिए अपनी जिंदगी से ज्यादा उनके भविष्य को बनाने में लगे रहते है..

नई दिल्ली: माता-पिता एक बच्चे के व्यक्तित्व को आकार देने में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं, वह बच्चों के लिए अपनी जिंदगी से ज्यादा उनके भविष्य को बनाने में लगे रहते है। ऐसा ही भारतीय टीम की कप्तान मिताली राज के जिंदगी में हुआ, कि उनके पिता ने उनका भविष्य का निर्माण किया और आज वह देश और परिवार का नाम रोशन कर रही है। 

आलसी थी मिताली
एक इंटरव्यू में मिताली ने कहा था कि वह काफी आलसी थी और पिता ने उनके इस आसल को छोड़ाने के लिए क्रिकेट ज्वॉन करवाया। उन्होंने बताया कि पिता को लगता था कि देर तक सोने से बेहतर है कि भाई के साथ सुबह उठकर क्रिकेट कोचिंग करे ताकि आलस्य दूर हो। क्रिकेट खेलेते हुए एक बाद दूर खड़े एकेडमी के कोच ज्योति प्रसाद उसे देख रहे थे। देखा कि वह बहुत ही सहज तरह से बॉल को स्ट्रेट हिट कर रही है। इसके बाद उन्होंने क्रिकेट पर पूरा ध्यान दिया। 

क्रिकेट में संयोग से आई मिताली : पिता
मिताली के पिता दोराईराज बताते हैं कि मिताली क्रिकेट में तो संयोग से आई। पहले जब हम उसे सुबह जल्दी उठाते थे तो वह रोती थी। लेकिन बाद में उसने बहुत मेहनत की। संपत भी बहुत कड़क और मुश्किल कोच थे। 

स्टंप से बल्लेबाजी करवाते थे कोच
मिताली की प्रैक्टिस के दौरान कई बार वे उसे एक स्टंप से बल्लेबाजी करने के लिए कहते थे और बॉल मिस होने पर खूब डांट पड़ती थी। वो लड़कों के साथ भी प्रैक्टिस करती थी और पुरुष खिलाड़ी तेज गेंद डालते थे। कैच प्रैक्टिस करते समय यदि मिताली जरा भी लापरवाही करती थी तो संपत उसे पत्थर से कैच प्रैक्टिस करवाते थे।

हाथ को पीठ पर बांधकर पत्थरों से प्रैक्टिस करती थीं मिताली
यदि उसके हाथ में पत्थर से चोट भी लग जाती थी तो उसे पीठ पर बांधकर दूसरे हाथ से प्रैक्टिस पूरी करवाई जाती थी। ग्राउंड में पानी का टैंक था, वहीं पक्की जगह थी उसी सीमेंट पिच पर मिताली बैटिंग की प्रैक्टिस करती थी। दोराई बताते हैं कि उसकी प्रैक्टिस के दौरान मैं खुद कई बार फील्डिंग करता था। 

मां ने मिताली के लिए छोड़ी नौकरी
वो कहते हैं कि मिताली की मां लीलाराज भी एक निजी कंपनी में नौकरी करती थीं, इसलिए हम उसे ज्यादा समय नहीं दे पाते थे। ऐसे में कोच की सलाह पर मिताली की मां ने अपनी जॉब छोड़ दी थी। दोराईराज कहते हैं कि प्रैक्टिस करने के दो साल के अंदर ही मिताली ने अंडर-17, अंडर-19 और आंध्र प्रदेश की सीनियर टीम के लिए खेलना शुरू किया, तब पहली बार लगा कि यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहतर खेलेगी। मिताली के पिता दोराईराज भी अपनी सर्विस के दौरान एयरफोर्स और आंध्रा बैंक से खेल चुके हैं।

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