भुगतान में भेदभाव पर बरसीं भारतीय महिला क्यूइस्ट

Edited By Punjab Kesari,Updated: 13 Jul, 2017 04:17 PM

indian women queuing on pay discrimination

कीरथ भंडाल और सुनिति दमानी विश्व बिलियड्रस और स्नूकर की दुनिया में कम चर्चित नाम हैं लेकिन उन्हें भुगतान में भेदभाव की वर्षों...

नई दिल्ली: कीरथ भंडाल और सुनिति दमानी विश्व बिलियड्रस और स्नूकर की दुनिया में कम चर्चित नाम हैं लेकिन उन्हें भुगतान में भेदभाव की वर्षों से चल रही चर्चा को नया जन्म दे दिया है। उनका मानना है कि कई वर्षों तक देश का प्रतिनिधित्व करने के बावजूद राष्ट्रीय चैंपियन बनने पर पुरूषों के मुकाबले महिलाओं को पांच गुना कम धनराशि का भुगतान अपमानजनक है। विश्व चैंपियनशिप में 2007 में दस साल की उम्र में पदार्पण करने वाली भंडाल ने कहा कि भारत के लिए इतने वर्षों से खेलने के बावजूद हमें अपना खर्चा खुद ही उठाना पड़ता है। मैंने इस साल के शुरू में राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीती थी और मुझे 5000 रूपये मिले थे। इसकी बात तक करने में शर्म आती है।

दिल्ली की रहने वाली भंडाल ने बिलियड्रस और स्नूकर दोनों में राष्ट्रीय खिताब जीते जबकि देश की चोटी की स्नूकर खिलाड़ी दमानी ने 2012 में राष्ट्रीय पूल खिताब जीता था। राष्ट्रीय स्तर की अपनी उपलब्धियों के अलावा वे कई विश्व चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। भंडाल को जूनियर वर्ग का खिताब जीतने पर पिछले सत्र में उन्हें बहुत कम पुरस्कार राशि मिली जबिक पिछले साल सीनियर बिलियड्रस का खिताब जीतने पर उन्हें 10,000 रूपये मिले जबकि पुरूष वर्ग के विजेता को 50,000 रूपये की पुरस्कार राशि मिली।  

शहर के जीसए एंड मेरी कालेज में पढ़ रही भंडाल ने कहा, ‘‘हमें जो पुरस्कार राशि मिलती है उसका हमारे लिये मौद्रिक मूल्य की तुलना में भावनात्मक महत्व अधिक है। यह सोचकर ही अजीब लगता है कि राष्ट्रीय चैंपियन को 10,000 रूपये मिलते हैं।’’ पुरूषों को पांच गुना अधिक धनराशि मिलती है और उन्हें सार्वजनिक क्षेत्रों में भी नौकरी भी मिल जाती है। कोलकाता में निजी क्षेत्र में काम रही दमानी ने कहा कि भेदभाव हर जगह है चाहे वह पुरस्कार राशि हो या नौकरी या प्रायोजन। अधिकतर पुरूष खिलाडयिों के पास अच्छी नौकरी है जबकि महिलाओं को नजरअंदाज किया जाता है। 

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