'कारगिल के शेर' विक्रम बत्रा काे सलाम, जिन्हाेंने अपनी अाखिरी सांस तक कर दी देश के नाम

Edited By ,Updated: 12 Oct, 2015 03:54 PM

story of vikram batra aka sher shah who gave his life in kargil war for the nation

करगिल युद्ध में दुशमन के छक्के छुड़ाकर भारत माता की लाज रखने वाले परमवीर चक्र विजेता विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितम्बर 1974 को हिमाचल प्रदेश में पालमपुर के पास घूगर गांव में हुआ था।

नई दिल्ली: करगिल युद्ध में दुशमन के छक्के छुड़ाकर भारत माता की लाज रखने वाले परमवीर चक्र विजेता विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितम्बर 1974 को हिमाचल प्रदेश में पालमपुर के पास घूगर गांव में हुआ था। उन्हें 1 जून 1999 को कारगिल युद्ध में अहम भूमिका निभाने के लिए चुनौती दी गई थी। उन्हें पाईंट 5140 को फतेह करना था, जोकि 17000 फीट की ऊंचाई पर था।

‘ये दिल मांगे मोर’
कारगिल विजय के हीरो रहे कैप्टन बत्रा को उनके सहयोगी शेरशाह बुलाते थे। यह उनका कोड नेम भी था और पाकिस्तानी भी इस कोड नेम से अच्छी तरह वाकिफ थे। कारगिल युद्ध के बाद जीत का जश्न मनाने के लिए कैप्टन बत्रा भले ही मौजूद ना रहे हो पर एक के बाद एक बंकर जीतने के बाद उनके साथियों की उनकी तरफ से लगाया जा रहा यह नारा ‘ये दिल मांगे मोर’ आज भी लोगों की जेहन में है। 

‘कारगिल का शेर’ 
कैप्टन बत्रा इतने जाबांज और बहादुर थे कि पाकिस्तानी भी उन्हें एक बड़ी चुनौती के रूप में स्वीकार करते थे। बंकर पर कब्जे के वक्त भी पाकिस्तानियों ने उन्हें खुलेआम चुनौती दी थी कि ऊपर आने की कोशिश ना करें। इस धमकी के बाद कैप्टन बत्रा के साथियों में एक अलग ही जोश आ गया था कि आखिर पाकिस्तानियों ने उन्हें चुनौती कैसे दी। कैप्टन बत्रा को ‘कारगिल का शेर’ भी कहा जाता था।

अंतिम शब्द थे ‘जय माता दी’
इसी ऑपरेशन में कैप्टन बत्रा को शेरशाह नाम दिया गया। मिशन के दौरान जब बत्रा अपनी टीम के साथ ऊपर चढ़ रहे थे तो ऊपर बैठे दुश्मनों ने फायरिंग शुरू कर दी। बत्रा ने बहादुरी का परिचय देते हुए तीन दुश्मनों को नजदीकी लड़ाई में मार गिराया और 20 जून 1990 को उन्होंने प्वाइंट 5140 पर भारत का झंडा लहराया। इसके अलावा उन्होंने प्वाइंट 5100, 4700, 4750 और 4875 पर भी जीत का परचम लहराया। अंतत: प्वाइंट 4875 पर कब्जा करते समय कैप्टन बत्रा बुरी तरह घायल हो गए और 7 जुलाई 1999 को भारत मां के इस वीर सपूत ने आखिरी बार ‘जय माता दी’ कह कर इस दुनिया से विदाई ली।

नहीं भूल सकते वो फोन कॉल 
कैप्टन बत्रा के पिता जी. एल बत्रा कहते हैं कि वह उस फोन कॉल को कभी नहीं भूल सकते, जो उनके बेटे ने बंकर पर कब्जा करने के बाद उन्हें किया था। मिस्टर बत्रा कहते हैं वह उनके जीवन का सबसे शानदार पल था जब उनके बेटे ने उन्हें फोन पर खबर दी कि वह बंकर पर कब्जा करने में कामयाब रहा है। बत्रा बताते हैं कि मैंने भी उस वक्त अपने बेटे को आशीर्वाद दिया था। 

कैप्टन बत्रा तक का सफर
जब भी कारगिल फतेह की चर्चा होगी कैप्टन विक्रम बत्रा की शहादत को याद किया जाएगा। बत्रा को प्रारम्भिक शिक्षा उनकी मां से मिली, पालमपुर के सेन्ट्रल स्कूल से 12वीं पास करने के बाद उन्होंने चंडीगढ़ के डीएवी कालेज में बीएससी संकाय में दाखिला लिया। बत्रा अच्छे छात्र होने के साथ एनसीसी (एयर विंग) के होनहार कैडेट थे। 1996 में बत्रा इंडियन मिलट्री एकेडमी में मॉनेक शॉ बटालियन में बत्रा का चयन किया गया और उन्हें जम्मू कश्मीर राईफल यूनिट, श्योपुर के लिए लेफ्टीनेट के पद पर नियुक्त किया गया। इसके कुछ समय बाद उन्हें कैप्टन की रैंक दी गई।

 

 

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