16वीं पुण्यतिथि: मरने से पहले बोले थे कैप्टन विक्रम बत्रा- मर कर भी तिरंगे में लिपटा आऊंगा

Edited By ,Updated: 07 Jul, 2015 04:04 PM

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करगिल युद्ध में शहीद हुए कैप्टन विक्रम बत्रा की अाज 16वीं पुण्यतिथि है। करगिल युद्ध में दुश्मनों के छक्के-छुड़ाकर भारत माता की लाज रखने वाले भारतीय सेना के शेरशाह स्व. कैप्टन विक्रम बत्रा के अंतिम शब्द थे ‘अगर मैं युद्ध में मरता हूं तब...

पालमपुर: करगिल युद्ध में शहीद हुए कैप्टन विक्रम बत्रा की अाज 16वीं पुण्यतिथि है। करगिल युद्ध में दुश्मनों के छक्के-छुड़ाकर भारत माता की लाज रखने वाले भारतीय सेना के शेरशाह स्व. कैप्टन विक्रम बत्रा के अंतिम शब्द थे ‘अगर मैं युद्ध में मरता हूं तब भी तिरंगे में लिपटा आऊंगा और अगर जीत कर आता हूं तब भी तिरंगे में लिपटा आऊंगा।’ देश के जवानों का यहीं जज्बा उन्हें जीत की अोर ले जाता है।


कैप्टन विक्रम बत्रा ‘शेरशाह’ के नाम से प्रसिद्ध है, उन्हें ‘कारगिल का शेर’ की कहा जाता है। उनका जन्म 9 सितम्बर 1974 हिमाचल प्रदेश में पालमपुर के पास घूगर गांव में हुआ था। 


बहादुर ‘शेरशाह की 16वीं पुण्यतिथि पर उनकी याद में कुछ तथ्य इस प्रकार हैं:


1. कैप्टन बत्रा को प्रारम्भिक शिक्षा उनकी मां से मिली। पालमपुर के सेन्ट्रल स्कूल से बारहवीं पास करने के बाद उन्होंने चंडीगढ़ के डीएवी कालेज में बीएससी संकाय में दाखिला लिया। बत्रा अच्छे छात्र होने के साथ एनसीसी (एयर विंग) के होनहार कैडेट थे। 


2. कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच मई और जुलाई 1999 के बीच कश्मीर के करगिल जिले में लड़ा गया। जिसमें कैप्टन विक्रम बत्रा शहीद हो गए। 


3. भारतीय सेना का एक अधिकारी कैप्टन विक्रम बत्रा एक दुश्मन पलटवार में एक घायल अधिकारी को बचाते हुए कारगिल युद्ध में मारे गए थे। 


4. कारगिल युद्ध के दौरान 24 साल की उम्र में वह 7 जुलाई 1999 को शहीद हो गए थे। 


5. 19 जून, 1999 को कैप्टन विक्रम बत्रा ने अपनी भारतीय सेना सहित दुश्मन की नाक के नीचे से 5140 बिंदु छीन लिया और एक महत्वपूर्ण पॉइंट पर कब्जा किया था। इस दौरान उन्होंने अकेले ही 3 घुसपैठियों को मार गिराया था।


6. कारगिल युद्ध की रणनीति के तहत बत्रा को उनकी यूनिट के साथ सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पाईंट 5140 को फतेह करने के लिए भेजा गया जो 17000 फीट की उचाई पर था। बत्रा को ऑपरेशन के तहत "शेरशांह" का उपनाम दिया गया। बत्रा अपनी यूनिट के साथ पहाड़ पर चढ़ गए लेकिन उपर बैठे दुश्मन ने उन पर फायरिंग शुरू कर दी, उस वक्त बत्रा असीम साहस का परिचय देते हुए प्वाइंट 5140 तक पहुंच गए और नजदीकी लड़ाई में अकेले ही तीन दुश्मनों को मार गिराया। उनकी वीरता ने यूनिट के जवानों में जोश भर दिया और 20 जून 1999 को प्वाइंट 5140 पर भारत का झंडा लहरा दिया। 


7. 7 जुलाई 1999 को एक दूसरे ऑपरेशन के दौरान कप्तान बत्रा ने घायल साथी को बचाने की कोशिश करते हुए शहीद हो गए। उन्होंने आखरी बार "जय मातादी" कह कर अंतिम सांस ली। 


8. 1996 में बत्रा इंडियन मिलट्री एकेडमी में मॉनेक शॉ बटालियन में बत्रा का चयन किया गया, और उन्हें जम्मू कश्मीर राईफल यूनिट, श्योपुर के लिए लेफ्टीनेट के पद पर नियुक्त किया गया। कुछ समय बाद उन्हें कैप्टन की रैंक दी गई। 


9. 2003 की फिल्म एलओसी कारगिल युद्ध के सैनिकों के लिए एक श्रद्धांजलि के रूप में बनाई गई थी। जिसमें कथित तौर पर अभिषेक बच्चन ने कप्तान बत्रा की भूमिका निभाई थी। 


10. करगिल के ऑपरेशन विजय में अपने असीम साहस के लिए कैप्टन बत्रा को मरणोपरांत "परमवीर चक्र" से सम्मानित किया गया। 


11. शेरशाह के नाम से प्रसिद्ध विक्रम बत्रा ने जब इस चोटी से रेडियो के जरिए अपना विजय उद्घोष ‘यह दिल मांगे मोर’ कहा तो सेना ही नहीं बल्कि पूरे भारत में उनका नाम छा गया।

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