अंग्रेजों का सिर काटकर इस मंदिर में चढ़ाते थे क्रांतिकारी!(Pics)

Edited By ,Updated: 24 Mar, 2015 05:30 PM

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गोरखपुर से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर चौरीचौरा की क्रांतिकारी धरती पर स्थापित तरकुला देवी मंदिर धार्मिक महत्त्व के चलते काफी प्रसिद्ध है।

नई दिल्ली: गोरखपुर से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर चौरीचौरा की क्रांतिकारी धरती पर स्थापित तरकुला देवी मंदिर धार्मिक महत्त्व के चलते काफी प्रसिद्ध है। मान्यता है कि इस मंदिर में चौरीचौरा के डुमरी के रहने वाले क्रांतिकारी बाबू बंधू सिंह अंग्रेजों का सिर कलम कर उसे तरकुल के पेड़ के नीचे स्थापित तीन पिंडियों पर अर्पण कर देते थे। स्थानीय लोगों का मानना है कि ऐसा करने से बाबू सिंह को अजीब शक्ति का अहसास होता था।

इस मंदिर में हर साल बड़ी तादाद में लोग माता के दर्शन करने आते है। इस मंदिर की विचित्र बात यहां प्रसाद के रूप में मिलने वाला बकरे का मांस है। इस लिहाज से यह देख का एक मात्र ऐसा मंदिर है, जहां इस तरह प्रसाद दिया जाता है। सबसे बड़ी खासियत यहां प्रसाद में मिलने वाला बकरे का मांस है। इसे देश का एकमात्र ऐसा मंदिर माना जाता है, जहां इस तरह की परंपरा है। 

1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम में बर्बर ब्रितानिया हुकूमत के खिलाफ भड़के जन विद्रोही समर के नायक चौरीचौरा डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह का जन्म 1 मई 1833 को हुआ था। अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिलाने वाले इस क्रांतिकारी की जब भी गुरिल्ला युद्ध के दौरान अंग्रेजों से मुठभेड़ होती, तो वह उनका सि‍र देवी मां को समर्पित कर देते थे। अंग्रेज पहले तो जंगल से अपने सिपाहियों के गायब होने का राज समझ नहीं पाए थे, लेकिन जब उन्हें इस बात का पता चला तो अंग्रेजों ने बंधू की डुमरी खास की हवेली को जला दिया। बंधू सिंह के पांच भाई भी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हो गए थे। 

स्थानीय नि‍वासियों ने बताया कि‍ बंधू सिंह को 12 अगस्त 1858 को गिरफ्तार किया गया। अंग्रेजों ने उन्हें सरेआम अलीनगर चौराहे के समीप एक बरगद के पेड़ में फांसी पर लटकाया दिया था। बताया जाता है कि उनकी फांसी का फंदा सात बार टूटा और आठवीं बार खुद बाबू बंधू सिंह ने कहा कि मां मुझे मुक्ति दो। यह कहकर उन्‍होंने खुद ही फंदा गले में डाल लि‍या और शहीद हो गए।

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