Edited By ,Updated: 20 Jan, 2015 09:38 AM
प्राच्य विद्याओं में जनकल्याण की दृष्टि से मंत्र शास्त्र का महत्वपूर्ण स्थान है। महार्थ मंजरी के अनुसार मनन योग्य शब्द ध्वनि मंत्र हैं। वैदिक काल में हमारे ऋषि-मुनियों ने सूर्य, चंद्र आदि ग्रहों
प्राच्य विद्याओं में जनकल्याण की दृष्टि से मंत्र शास्त्र का महत्वपूर्ण स्थान है। महार्थ मंजरी के अनुसार मनन योग्य शब्द ध्वनि मंत्र हैं। वैदिक काल में हमारे ऋषि-मुनियों ने सूर्य, चंद्र आदि ग्रहों अग्रि, वायु जल के देवता, वरुण आदि की विश्व कल्याण में उपादेयता को जानकर उनकी स्तुति में मंत्रों की रचना की। कालांतर में अन्य देवी-देवताओं की साधना हेतु भी मंत्रों की रचना की गई।
श्री हनुमान जी को आशुतोष भगवान शंकर का अंशावतार माना जाता है। वह भी साधना करने पर भोलेनाथ की भांति ही अपने भक्तों पर जल्दी प्रसन्न होकर उनके कष्टों का निवारण करते हैं।
कुश या ऊन के आसन पर बैठकर हनुमान जी के स्वरूप को सामने रखें और सिंदूर, चावल, लाल पुष्प, धूप, दीप आदि से पूजन करें तत्पश्चात बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं। फिर पुष्प हाथ में लेकर सांसारिक सुखों के लिए निम्न मंत्र का जाप करें-
ॐ हं पवन नंदनाय स्वाहा