Edited By ,Updated: 12 Feb, 2015 10:49 AM
कभी भी किसी कार्य और व्यवहार में अति न कीजिए। अपनी मर्यादा और सीमा में रहें। इधर-उधर कूदने-फांदने से कुछ नहीं मिलता बल्कि हानि की आशंका बलवती हो उठती है।
कभी भी किसी कार्य और व्यवहार में अति न कीजिए। अपनी मर्यादा और सीमा में रहें। इधर-उधर कूदने-फांदने से कुछ नहीं मिलता बल्कि हानि की आशंका बलवती हो उठती है।
प्रीति, अभ्यास और प्रतिष्ठा में धीरे-धीरे ही वृद्धि होती है। इनकी क्रमिक विकास की अवधि दीर्घ होती है क्योंकि ये सभी आदमी जन्म के साथ नहीं ले आता। इन सभी का स्वरूप आदमी के व्यवहार, साधना और आचरण के परिणाम के अनुसार उसके सामने आता है। जीवन में उपलब्धि प्राप्त करने का कोई छोटा या संक्षिप्त मार्ग नहीं होता।
दूसरों का वैभव देखकर कुछ लोग अपना संयम खोने लगते हैं और सोचते हैं कि वह तत्काल उनको प्राप्त हो जाए। अनेक लोगों को कड़े संघर्ष करते हुए धन और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। तब उनकी आयु भी बड़ी होती है पर युवा सोचते हैं कि वैसी ही प्रतिष्ठा और सुख तत्काल छोटे या संक्षिप्त मार्ग से प्राप्त हो जाए। जिन लोगों के माता-पिता ही प्रतिष्ठित और धनवान हैं उन युवाओं के लिए यह संभव है पर जो छोटे और गरीब परिवारों के हैं उनके लिए तो यह संभव नहीं होता अत: उनको संयम रखकर ही आगे बढऩा चाहिए। संक्षिप्त और छोटे मार्ग के चक्कर में उनके जीवन में भटकाव भी आ सकता है।